Indian farmers in bad condition
नमस्कार दोस्तों,
आप पढ़ रहे हे "my agriculture" blogs
Note - मेरा मकसद किसी भी राजनीतिक दल या उसके सदस्य की बुराई करना नही है में जो सच है उस से आप सब को अवगत करवाना चाहता हु । क्षमा प्रार्थी ।।
किसान प्रकृति की मार को जैसे तैसे झेल जाता है लेकिन हमारी दोहरी आर्थिक नीतियां उनका मनोबल तोड़ कर रख देती हैं ।
जीवट छवि वाले राजस्थान के किसानों का जिंदगी की जंग यूं हार जाना जानकारों को चौंकाता है. प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार संदीप पुरोहित इस बारे में कहते हैं, ‘घोर विषम प्राकृतिक परिस्थितियों में खेती करने की वजह से हमारे किसान स्वभाविक रूप से बड़ी-बड़ी से परेशानियों को झेलने के आदी होते हैं. राजस्थान के गौरवमयी इतिहास से भी वे आख़िरी दम तक लड़ते रहने की प्रेरणा लेते रहे हैं. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. प्रकृति के बाद लालफीताशाही से जूझते-जूझते किसानों की हिम्मत पस्त होने लगी है.’
लेकिन यह स्थिति सिर्फ़ राजस्थान की भी नहीं बल्कि देश भर के किसानों की कहानी है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी किए गये आंकड़ों के मुताबिक बीते करीब दो दशकों में देश भर के 3.2 लाख से ज्यादा किसानों को आत्महत्या के लिए मज़बूर होना पड़ा है. एनसीआरबी की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2018 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,349 लोगों ने ख़ुदकुशी कर ली थी. वहीं 2017 में ये आंकड़ा 10,655 था. इस तरह बीते दो साल में भारत में प्रतिदिन औसतन 29 किसानों ने अपनी जान दी है.।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के एक सर्वे के मुताबिक देश के आधे से ज्यादा किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं. और एक अन्य अध्ययन के अनुसार हर तरफ से निराश हो चुके देश के 76 फीसदी किसान खेती छोड़कर कुछ और करना चाहते हैं. आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के आंकड़े भी बताते हैं कि वर्ष 2016-17 की तुलना में कृषि की सकल मूल्य वृद्धि (जीवीए) में करीब 54 प्रतिशत की कमी देखी गई है.
किसानों की इस बदहाली के लिए वरिष्ठ समाजशास्त्री राजीव गुप्ता मौजूदा और पिछली सरकारों की नीयत और नीति दोनों को जिम्मेदार ठहराते हैं. वे कहते हैं, ‘90 के दशक में वैश्वीकरण के दौर के बाद किसानों को राजनैतिक एजेंडे में तो फंसाकर रखा गया, लेकिन विकास के एजेंडे से उन्हें बाहर कर दिया गया. बार-बार कृषकों के हितों की दुहाई दी गईं. उनके नाम पर कमेटियों का गठन हुआ. उन्हें सब्सिडी दी गईं. उनके कर्ज़ माफ़ किए. लेकिन किसान की आय कैसे बढ़ाई जाए, यह सुनिश्चित नहीं किया गया! बल्कि शासन-प्रशासन ने अन्नदाताओं की इकलौती निधि ‘आत्मसम्मान’ को रौंद कर उन्हें जान देने के लिए मजबूर कर दिया. ये आत्महत्याएं नहीं बल्कि संस्थागत हत्याएं हैं. इनके लिए राज्य और उसके विभिन्न निकाय जिम्मेदार हैं.’
खाद्य एवं आर्थिक नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं कि किसानों की आय बढ़ाना सरकार के आर्थिक लक्ष्यों की वरीयता में कभी शामिल ही नहीं रहा. ‘आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश के तकरीबन आधे राज्यों में एक कृषक परिवार की औसत वार्षिक आय(आर्थिक सर्वेक्षण 2016 के मुताबिक) महज 20,000 रुपये यानी 1666.66 रुपए मासिक है. यह दिखाता है कि किसानों की स्थिति को लेकर सरकारें कितनी गंभीर हैं!’ देविंदर शर्मा देश के आर्थिक नीतिकारों के किसानों के प्रति दोहरे रवैये को कठघरे में खड़ा करते हुए कहते हैं, ‘दर्जन भर व्यवसायिक घरानों के लिए दसियों लाख करोड़ का ऋण माफ़ किया जाना हमारे यहां विकास का प्रतीक है, जबकि कृषि पर आश्रित 32 करोड़ लोगों की कर्ज़माफ़ी आर्थिक अनुशासनहीनता और राष्ट्रीय राजकोष के अपव्यय के तौर पर देखी जाती है.’ ।
उनकी इस बात की बानगी के तौर पर पिछली मोदी सरकार में वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस बयान को लिया जा सकता है जिसमें उन्होंने (उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के) कर्ज़दार किसानों की मदद करने से इनकार कर दिया था. इसके पीछे वित्त मंत्री की दलील थी कि चूंकि फसलों से जुड़े निर्णय राज्य के अधीन आते हैं, इसलिए जो भी राज्य काश्तकारों का ऋण माफ़ करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है, उसे अपने स्तर पर ही संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी. विश्लेषकों का मानना है कि तब किसानों की मदद कर जेटली राजकोष पर अतिरिक्त भार नहीं डालना चाहते थे. इसके करीब एक साल बाद रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने आंकड़े जारी कर बताया कि अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच 3.16 लाख करोड़ रुपए के फंसे हुए कर्जों को माफ़ कर दिया गया था.
2018 में ही जेटली ने सरकारी बैंकों के रिकॉर्ड से नॉन परफॉर्मिंग एसेट (फंसे हुए कर्ज) से जुड़ी जानकारी हटाने का समर्थन किया था. तब उनकी इस कवायद को कर्ज़दार उद्योगपतियों की पहचान छिपाने की कोशिश से जोड़कर देखा था. उधर खबरों के मुताबिक 2004 से 2016 के बीच औद्योगिक घरानों द्वारा लिये गये करीब पचास लाख करोड़ रुपयों को भुलाए जा चुके राजस्व की श्रेणी में रखकर माफ़ किया किया जा चुका है.
साल 2016 में तत्कालीन कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने सदन में किसानों पर 12 लाख 60 हजार करोड़ रुपए का बकाया होने की जानकारी दी थी. जबकि बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सिर्फ 10 कॉरपोरेट घरानों का कर्ज ही 7 लाख 31 हजार करोड़ रुपये है. इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के शीर्ष बारह औद्योगिक एनपीए (उद्योगों में फंसा कर्ज) का मूल्य (3.45 लाख करोड़ रुपये) 2018 में 10 राज्यों द्वारा की गई किसानों की कर्जमाफी (1.8 लाख करोड़ रुपये) का लगभग दोगुना है. ।
एक अन्य मीडिया रिपोर्ट बताती है कि बीते साल तक देश की कुछ चुनिंदा स्टील कंपनियों पर ही तकरीबन 1.4 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ बाकी था जो कि पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुल कृषि ऋण- 75 हजार करोड़ - के दोगुने से जरा ही कम था. इनमें से कुछ औद्योगिक घराने तो ऐसे हैं जिन पर अकेले ही किसी-किसी राज्य के कृषि ऋण से कहीं ज्यादा राशि बकाया थी. लेकिन इसके बावजूद उद्योगों के प्रति सरकार का झुकाव किसी से नहीं छिपा है.
बजट 2020-21 की बात करें तो किसानों और ग्रामीण भारत से जुड़े कृषि मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय और पशुपालन व डेयरी मंत्रालयों के लिए 340,600 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो संपूर्ण बजट का सिर्फ़ 11 प्रतिशत है. सवाल उठाया जा सकता है कि ग्रामीण भारत में बसने वाली 70 प्रतिशत आबादी के लिए महज 11 प्रतिशत बजट का आवंटन कितना न्यायपूर्ण है? जानकारों के मुताबिक कुल बजट की ही तरह इस बजट में भी यदि 2019-20 की तुलना में नौ फ़ीसदी की बढ़ोतरी की जाती तो यह बजट 3,71,000 करोड़ रुपए होना चाहिए था.
इसी तरह 2019-20 के बजट पर नज़र डालें तो 400 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली कंपनियों पर कॉरपोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दिया गया और स्टार्टअप को पूंजी जुटाने से लेकर एंजेल टैक्स पर भी राहत दी गई. लेकिन किसानों के मामले में सरकार इतनी उदार नहीं दिखी. ग़ौरतलब है कि पिछले बजट में वर्ष कृषि मंत्रालय का बजट 138,564 करोड़ रुपए था, लेकिन इसे बाद में संशोधित कर 109,750 करोड़ रुपए कर दिया गया था. ।
हालांकि 2018 में केंद्र सरकार ने ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ योजना के तहत काश्तकारों को प्रतिवर्ष छह हजार रुपए की मदद देने की घोषणा की थी. इस योजना के तहत प्रत्येक चौथे महीने की शुरुआत में यानी साल में तीन बार सरकार की तरफ़ से किसानों के बैंक खातों में दो हजार रुपए जमा करवाए जाने लगे. किसी ने इस मदद को ऊंट के मुंह में जीरे जैसा बताया तो कई ऐसे भी थे जिन्होंने किसानों को मिली इस थोड़ी-बहुत मदद को कोई मदद न मिलने से बेहतर ही समझा.
यहां यह जानना दिलचस्प है कि पिछले साल इस योजना के लिए 75 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि इस बार के बजट में इसके लिए सिर्फ 54,370 करोड़ रूपये ही दिए गए. पीएम किसान योजना के मदद में यह कटौती चौंकाने वाली थी. क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले इसके तहत सिर्फ छोटी जात के किसानों को साल में तीन किश्तों में छह हजार रूपये की मदद देने की बात कही गई थी. लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद सरकार ने सभी किसानों को इसके दायरे में ला दिया. सहज बुद्धि कहती है कि किसानों की संख्या बढ़ने के बाद इस योजना के लिए पैसे बढ़ने चाहिए थे, लेकिन इसके बजाय पैसे घटा दिये गए.
एक आरटीआई आवेदन के जवाब में कृषि विभाग द्वारा दी गई जानकारी बताती है कि पूरे देश के करीब 25 फीसद किसान ही इस साल की शुरुआत तक पीएम किसान योजना की सभी किश्तों का लाभ ले पाये थे. आंकड़े बताते हैं कि पीएम किसान की पहली किश्त के लिए देश भर में 8.80 करोड़ लाभार्थी चिन्हित किए गए जिनमें से 8.35 करोड़ को इसका लाभ मिला. दूसरी किश्त में लाभार्थियों की संख्या घटकर 7.51 करोड़ रह गई और तीसरी किश्त पाने वाले किसान 6.12 करोड़ ही रह गए. सत्यापन में सख्ती के साथ यह संख्या और घटी और चौथी किश्त पाने वालों की संख्या 3.01 करोड़ पर ही सिमट गई. ।
ये आंकड़े आपको सचाई से अवगत करवाते हे , ये हमे बताते है कि किसान की हालत दिन प्रतिदिन कैसी होती जा रही है ।
आपसे दुबारा मुलाकात होगी ऐसे ही कुछ नए आकड़ो के साथ तब तक जुड़े रहे अपना ध्यान रखें सुरक्षित रहे
Notification के लिए follow करे " my agriculture " blogs को ।
धन्यवाद् ।।
बहुत ही गहनता ओर जांच पड़ताल के साथ आप ने जमीनी स्तर पर किसानों के हालात को आप के इस ब्लॉक के माध्यम से हम सब को अवगत कारवया देश का पालनहार आज संकट में है सरकार आती जाती किसानों से झूठे वादे करती है और किसानों को धोखे के अलावा कुछ नही मिलता वास्तव में ये लेख हर भारतीय तक पहुचना हम सब की जिम्मेदारी है
ReplyDeleteसरकार की आँखे आम जन ही खोल सकता है ।
मुहिम बना कर हमें चलानी चाहिए जिस से राज्य सरकार और केंद्र सरकार जो नींद में सो रही है वो जाग जाए वरना ये देश गाँवो का ओर किसानों का देश है जिनने इस देश को अपने खून पसीने से सींचा है उन को न्याय नही मिल पाना चिंता का विषय है।
जी भैया यही उमिद हे की मेरी बात कही तो सुनी जाये कभी ना कभी तो किसानों को न्याय मिलेगा 🙏
ReplyDeleteIt's true....hum sab Ko milkar aavaj uthane ki jarurat he....
ReplyDeleteAbsolutely right brother . We have to do something
Delete